ऋगवेद में मुहम्मद की झूठी भविष्यवाणी, जाकिर नाइक की एक शाजिस का हिस्सा, मकसद हिन्दुओं को मुसलमान बनाना
जाने ऋग्वेद के उन श्लोको का अलसी अर्थ, जिनमे जाकिर करता है मुहम्मद की भविष्यवाणी का दावा ! जाकिर जैसे लोग इस समाज के लिए खतरे से कम नहीं हैं, जिनका मकसद भारत को इस्लामीक राष्ट्र बनाके इस्लामिक कानून शरियत को लागू कराना है ! इसके लिए वो भारत में अपना विशेष अजेंडा चला रहा है जिसके तहत वो नये नये तरीके खोजा करता है ताकि वो ज्यादा से ज्यादा हिन्दुओं को इस्लाम कबूल करवा सके और कहीं हद तक वो अपने इस मकसद में सफल रहा है क्योंकि कई भोले भाले हिन्दू अज्ञानता के अभाव में उसकी बातों में आकर इस्लाम कबूल कर लेते हैं ! आज हम इसके द्वारा फैलाई गई एक भ्रान्ति, जिसमे ये कहा गया है की ऋग्वेद 1.१३ के तीसरे श्लोक में मुहम्मद के जन्म लेने की भविष्यवाणी है, का पर्दाफाश करेंगे !
ऋग्वेद 1.13.
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इस सूक्त का तीसरा श्लोक, जाकिर नाईक जैसे हिंदू विरोधियों द्वारा गलत अनुवाद करके प्रचारित किया जा रहा है| उनलोगों ने इस सूक्त के तीसरे श्लोक को लेकर यह झूठ गढा है कि इसमे मोहम्मद की भविष्यवाणी की गई| यह सरासर गलत है| झूठ का पर्दाफाश करने के लिए पुरे सूक्त का सही अनुवाद हम दे रहे हैं
सुसमिद्धो न आ वह देवानग्ने हविष्मते |होतः पावक यक्षि च || 1||
मधुमन्तं तनूनपाद् यज्ञं देवेषु नः कवे | अद्या कर्णुहि वीतये || 2||
नराशंसमिह प्रियमस्मिन यज्ञ उप ह्वये | मधुजिह्वंहविष्कृतम् || 3||
अग्ने सुखतमे रथे देवाँ ईळित आ वह | असि होता मनुर्हितः || 4||
सत्र्णीत बर्हिरानुषग घर्तप्र्ष्ठं मनीषिणः | यत्राम्र्तस्य चक्षणम || 5||
वि शरयन्तां रताव्र्धो दवारो देवीरसश्चतः | अद्या नूनं च यष्टवे ||6||
नक्तोषासा सुपेशसास्मिन यज्ञ उप हवये | इदं नो बर्हिरासदे || 7||
ता सुजिह्वा उप हवये होतारा दैव्या कवी |यज्ञं नो यक्षतामिमम ||8|
इळा सरस्वती मही तिस्रो देवीर्मयोभुवः | बर्हिः सीदन्त्वस्रिधः || 9||
इह तवष्टारमग्रियं विश्वरूपमुप हवये | अस्माकमस्तुकेवलः || 10||
अव सर्जा वनस्पते देव देवेभ्यो हविः | पर दातुरस्तु चेतनम || 11||
सवाहा यज्ञं कर्णोतनेन्द्राय यज्वनो गर्हे |तत्र देवानुप हवये ||12||
अर्थ
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१. पवित्रकर्ता,यज्ञ संपादनकर्ता, हे अग्निदेव! [दिव्य रूप से] प्रज्वल्लित होकर यग्यमान(यजमान) के लिए देवताओं का आह्वाहन करें और उनको लक्ष्य करके यज्ञ संपन्न करें, अर्थात देवताओं के पोषण के लिए हविष्यान्न(हवन में अर्पित अन्न आदि) ग्रहण करें|
२.उर्ध्वागामी, मेधावी, हे अग्निदेव! हमारी रक्षा के लिए प्राणवर्धक मधुर हवियों(हवन) को देवताओं के लिए निमित्त(देवताओं के प्रतिनिधि बनकर) प्राप्त करे और उन तक(देवताओं तक) पहुंचाएं|
३. [मनुष्यों के] पूजनीय (नाराशंस), देवताओं के प्रिय और आह्लादक (मधुजिव्ह) अग्नि देव का हम इस यज्ञ में आह्वान करते हैं| वह हमारे हवियों (हवन) को देवताओं तक पहुँचाने वाले हैं,अस्तु, स्तुत्य हैं|
४, मानवमात्र के हितैषी हे अग्निदेव! आप अपने श्रेष्ठ सुखदायी रथ से देवतों को लेकर [यज्ञ स्थल पर ] पधारं | हम आपकी वंदना करते हैं|
५. हे मेधावी पुरुषों! आप इस यज्ञ में कुश के आसनों को परस्पर मिलकर ऐसे बिछाएं कि उसपर धृत-पात्र को भली भांति रखा जा सके, जिससे अमृत-तुल्य धृत का सम्यक दर्शन हो सके|
६. आज यज्ञ करने के लिए निश्चित रूप से ऋत(यज्ञीय वातावरण) की वृद्धि करने वाले अविनाशी दिव्य-द्वार खुल जाएँ |
७.सुंदर रूपवती रात्रि और उषा(प्रभात) का हम इस यज्ञ में आह्वाहन करते हैं | हमारी ओर से आसान रूप में या बरही (कुश) प्रस्तुत है||७||
८. उन उत्तम वचन वाले और मेधावी दों(अग्नियों) दिव्या होताओं(हवन करने वाले) को यज्ञ में यजन के निमित्त(यज्ञ करने के लिए) हम बुलाते हैं|
९ इला, सरस्वती और मही ये तीन देवियाँ सुखकारी और क्श्यरहित) हैं | ये तीनो दीप्तमान दिव्य कुश आसन पर विराजमान हों|
१० प्रथम पूज्य, विविध रूप वाले त्वष्टादेव का इस यज्ञ में आह्वाहन करते हैं, वे देव केवल हमारे ही हों |
११ हे वनस्पति देव! आप देवों के लिए नित्य हविष्यान्न प्रदान करने वाले दाता को प्राण रूप उत्साह प्रदान करें||११||
१२.(हे अध्वर्यु!) आप याजकों के घर में इन्द्रदेव की तुष्टि के लिए आहुतियाँ समर्पित करें | हम होता(हवन देने वाले) वहाँ देवों को आमंत्रित करते हैं||१२||
"ओम् शांति शांति शांति"
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ऋग्वेद 1.13.
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इस सूक्त का तीसरा श्लोक, जाकिर नाईक जैसे हिंदू विरोधियों द्वारा गलत अनुवाद करके प्रचारित किया जा रहा है| उनलोगों ने इस सूक्त के तीसरे श्लोक को लेकर यह झूठ गढा है कि इसमे मोहम्मद की भविष्यवाणी की गई| यह सरासर गलत है| झूठ का पर्दाफाश करने के लिए पुरे सूक्त का सही अनुवाद हम दे रहे हैं
सुसमिद्धो न आ वह देवानग्ने हविष्मते |होतः पावक यक्षि च || 1||
मधुमन्तं तनूनपाद् यज्ञं देवेषु नः कवे | अद्या कर्णुहि वीतये || 2||
नराशंसमिह प्रियमस्मिन यज्ञ उप ह्वये | मधुजिह्वंहविष्कृतम् || 3||
अग्ने सुखतमे रथे देवाँ ईळित आ वह | असि होता मनुर्हितः || 4||
सत्र्णीत बर्हिरानुषग घर्तप्र्ष्ठं मनीषिणः | यत्राम्र्तस्य चक्षणम || 5||
वि शरयन्तां रताव्र्धो दवारो देवीरसश्चतः | अद्या नूनं च यष्टवे ||6||
नक्तोषासा सुपेशसास्मिन यज्ञ उप हवये | इदं नो बर्हिरासदे || 7||
ता सुजिह्वा उप हवये होतारा दैव्या कवी |यज्ञं नो यक्षतामिमम ||8|
इळा सरस्वती मही तिस्रो देवीर्मयोभुवः | बर्हिः सीदन्त्वस्रिधः || 9||
इह तवष्टारमग्रियं विश्वरूपमुप हवये | अस्माकमस्तुकेवलः || 10||
अव सर्जा वनस्पते देव देवेभ्यो हविः | पर दातुरस्तु चेतनम || 11||
सवाहा यज्ञं कर्णोतनेन्द्राय यज्वनो गर्हे |तत्र देवानुप हवये ||12||
अर्थ
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१. पवित्रकर्ता,यज्ञ संपादनकर्ता, हे अग्निदेव! [दिव्य रूप से] प्रज्वल्लित होकर यग्यमान(यजमान) के लिए देवताओं का आह्वाहन करें और उनको लक्ष्य करके यज्ञ संपन्न करें, अर्थात देवताओं के पोषण के लिए हविष्यान्न(हवन में अर्पित अन्न आदि) ग्रहण करें|
२.उर्ध्वागामी, मेधावी, हे अग्निदेव! हमारी रक्षा के लिए प्राणवर्धक मधुर हवियों(हवन) को देवताओं के लिए निमित्त(देवताओं के प्रतिनिधि बनकर) प्राप्त करे और उन तक(देवताओं तक) पहुंचाएं|
३. [मनुष्यों के] पूजनीय (नाराशंस), देवताओं के प्रिय और आह्लादक (मधुजिव्ह) अग्नि देव का हम इस यज्ञ में आह्वान करते हैं| वह हमारे हवियों (हवन) को देवताओं तक पहुँचाने वाले हैं,अस्तु, स्तुत्य हैं|
४, मानवमात्र के हितैषी हे अग्निदेव! आप अपने श्रेष्ठ सुखदायी रथ से देवतों को लेकर [यज्ञ स्थल पर ] पधारं | हम आपकी वंदना करते हैं|
५. हे मेधावी पुरुषों! आप इस यज्ञ में कुश के आसनों को परस्पर मिलकर ऐसे बिछाएं कि उसपर धृत-पात्र को भली भांति रखा जा सके, जिससे अमृत-तुल्य धृत का सम्यक दर्शन हो सके|
६. आज यज्ञ करने के लिए निश्चित रूप से ऋत(यज्ञीय वातावरण) की वृद्धि करने वाले अविनाशी दिव्य-द्वार खुल जाएँ |
७.सुंदर रूपवती रात्रि और उषा(प्रभात) का हम इस यज्ञ में आह्वाहन करते हैं | हमारी ओर से आसान रूप में या बरही (कुश) प्रस्तुत है||७||
८. उन उत्तम वचन वाले और मेधावी दों(अग्नियों) दिव्या होताओं(हवन करने वाले) को यज्ञ में यजन के निमित्त(यज्ञ करने के लिए) हम बुलाते हैं|
९ इला, सरस्वती और मही ये तीन देवियाँ सुखकारी और क्श्यरहित) हैं | ये तीनो दीप्तमान दिव्य कुश आसन पर विराजमान हों|
१० प्रथम पूज्य, विविध रूप वाले त्वष्टादेव का इस यज्ञ में आह्वाहन करते हैं, वे देव केवल हमारे ही हों |
११ हे वनस्पति देव! आप देवों के लिए नित्य हविष्यान्न प्रदान करने वाले दाता को प्राण रूप उत्साह प्रदान करें||११||
१२.(हे अध्वर्यु!) आप याजकों के घर में इन्द्रदेव की तुष्टि के लिए आहुतियाँ समर्पित करें | हम होता(हवन देने वाले) वहाँ देवों को आमंत्रित करते हैं||१२||
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