बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि जब फ़िल्मी जगत की शुरुआत हुई थी तब वैश्याएँ इन फिल्मों में नृत्य आदि करती थी किन्तु अब इन सबने उनके जगह ले ली है।
अंतर केवल इतना ही कि वो आम वैश्याएँ थी और ये लग्जरी गाड़ियों में घूमने वाली वैश्याएँ हैं। लेकिन विडम्बना ये ली यही वैश्याएँ कर रही हैं माँ पद्मिनी जैसी सम्मानित स्त्री का रोल.....थू एक ने आत्मसम्मान बचाने के लिये अपना शरीर अग्नि को समर्पित कर दिया और एक पैसा कमाने के लिये अपना शरीर सैफई महोत्सव जैसे कार्यक्रमों में दूसरों को समर्पित कर देती है...
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